Working Principle Synchronous Motor in Hindi | सिंक्रोनस मोटर के कार्य सिद्धांत

 इस आर्टिकल में "working principle synchronous motor" यानी सिंक्रोनस मोटर के कार्य सिद्धांत को जानने वाले हैं। अगर आपके मन में सवाल है कि सिंक्रोनस मोटर क्या है? तो इसे हमने पहले के लेख में अच्छे से बताया है। इस लेख में हम केवल इसके वर्किंग प्रिंसिपल को बताने वाले हैं।

सिंक्रोनस मोटर का कार्य सिद्धांत (Working Principle Synchronous Motor in Hindi)

सिंक्रोनस मोटर का कार्य सिद्धांत 'सिंक्रोनिज्म' पर आधारित है। इस सिद्धांत में, रोटर की घूर्णन गति AC सप्लाई की आवृत्ति के साथ तालमेल बिठाती है। एसी मोटर की तरह, सिंक्रोनस मोटर में भी एक स्थिर भाग होता है जिसे स्टेटर कहा जाता है।

स्टेटर को रोटर की तरह ही समान संख्या के पोल्स के लिए वाइंड किया जाता है और इसे तीन फेज़ AC सप्लाई दी जाती है। तीन फेज़ एसी सप्लाई स्टेटर में एक घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। रोटर की वाइंडिंग को DC सप्लाई दी जाती है, जिससे रोटर चुंबकीय हो जाता है। उदाहरण के लिए, दो पोल वाली synchronous motor के चित्र को नीचे देख सकते हैं।

Working principle synchronous motor
  • जब स्टेटर (जो स्थिर भाग है) के पोल्स सिंक्रोनस गति से घूम रहे होते हैं, और अगर रोटर (जो घूमने वाला भाग है) का उत्तर (N) ध्रुव स्टेटर के उत्तर (N) ध्रुव के पास आ जाता है, तो दोनों एक ही प्रकार के ध्रुव होते हैं। चुंबकीय गुण के अनुसार, एक ही प्रकार के ध्रुव हमेशा एक-दूसरे को प्रतिकर्षित (धक्का देते) हैं।
  • इस प्रतिकर्षण के कारण, रोटर पर एक बल लगता है जो इसे वामावर्त दिशा (यानि घड़ी की विपरीत दिशा) में घुमाने की कोशिश करता है। इसे ही एंटी-क्लॉकवाइज टॉर्क कहते हैं।
  • स्टेटर के पोल्स सिंक्रोनस गति से तेजी से घूमते हैं और अपनी स्थिति जल्दी-जल्दी बदलते हैं।
  • जड़ता (inertia) के कारण रोटर उतनी तेजी से नहीं घूम पाता, इसलिए स्टेटर और रोटर के पोल्स की स्थिति बदल जाती है।
  • जब स्टेटर का N ध्रुव रोटर के S ध्रुव के पास आता है, तो विपरीत ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
  • इस आकर्षण के कारण, रोटर पर दक्षिणावर्त (घड़ी की दिशा में) टॉर्क उत्पन्न होता है, जिससे यह घूमता है।
  • इसलिए, रोटर एक तेजी से बदलते हुए टॉर्क का अनुभव करेगा, जिससे मोटर चालू नहीं हो पाएगी। यह स्थिति रोटर को लगातार एक दिशा में नहीं घुमने देती, और परिणामस्वरूप, मोटर शुरू नहीं होती।
  • लेकिन, अगर रोटर को किसी बाहरी बल से स्टेटर की सिंक्रोनस गति तक घुमा दिया जाए (स्टेटर के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में), और रोटर का चुंबकीय क्षेत्र भी सिंक्रोनस गति के पास सक्रिय किया जाए, तो स्टेटर के पोल्स रोटर के विपरीत पोल्स को लगातार आकर्षित करेंगे। 
  • अब क्योंकि रोटर भी उसी गति से घूम रहा है, उसकी स्थिति पूरे चक्र में स्थिर रहेगी। इस स्थिति में, रोटर पर एक दिशा में स्थिर टॉर्क लगेगा। स्टेटर और रोटर के विपरीत पोल्स आपस में लॉक हो जाएंगे, और रोटर सिंक्रोनस गति पर स्थिर रूप से घूमता रहेगा।

Working Principle Synchronous Motor को आसान शब्दों में नीचे समझाया गया है ―

सिंक्रोनस मोटर का काम करने का सिद्धांत स्टेटर के चुंबकीय क्षेत्र और रोटर में उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के बीच की क्रिया पर आधारित होता है। जब स्टेटर वाइंडिंग को एसी सप्लाई दी जाती है, तो इसमें एक घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

यह घूर्णनशील क्षेत्र रोटर में धारा प्रवाहित करता है, जहाँ रोटर का चुंबकीय क्षेत्र डीसी सप्लाई से उत्पन्न होता है। स्टेटर और रोटर के इन दोनों चुंबकीय क्षेत्रों की आपसी क्रिया से एक टॉर्क उत्पन्न होता है, जो रोटर को स्टेटर के घूर्णनशील क्षेत्र की गति के साथ घुमाता है। यही कारण है कि इसे सिंक्रोनस मोटर कहा जाता है, क्योंकि रोटर और स्टेटर समान गति से चलते हैं।

लगातार काम करने के लिए, रोटर को पहले सिंक्रोनस गति के पास लाया जाता है। एक बार जब रोटर इस गति तक पहुँच जाता है, तो यह स्टेटर के घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र के साथ फेज़ लॉक हो जाता है और सिंक्रोनस गति से घूमता रहता है।

सिंक्रोनस मोटर को चालू करने की विधियाँ

सिंक्रोनस मोटर को शुरू करना थोड़ा जटिल होता है, क्योंकि यह मोटर खुद से स्टार्ट नहीं हो सकती। इसे चालू करने के लिए रोटर को पहले सिंक्रोनस गति (जिस गति से स्टेटर का चुंबकीय क्षेत्र घूम रहा है) के पास लाना पड़ता है। इसे शुरू करने के मुख्य तीन तरीके होते हैं:—

  1. एक छोटी इंडक्शन मोटर (जिसे पोनी मोटर कहा जाता है) रोटर के शाफ्ट पर लगाई जाती है। यह पोनी मोटर रोटर को सिंक्रोनस गति के पास लाती है। जब रोटर सही गति पर पहुँच जाता है, तो मुख्य मोटर को एसी सप्लाई के साथ सिंक्रोनाइज़ कर दिया जाता है।
  2. इस विधि में रोटर को एक डीसी सप्लाई दी जाती है, जिससे रोटर DC मोटर की तरह घूमने लगता है। जब यह पर्याप्त गति पकड़ लेता है, तो इसे एसी सप्लाई से जोड़ा जाता है और यह सिंक्रोनस गति पर चलने लगता है।
  3. डैम्पर वाइंडिंग्स रोटर में लगाए जाते हैं, जो इसे शुरू में एक इंडक्शन मोटर की तरह काम करने में मदद करते हैं। जब मोटर की गति सिंक्रोनस गति के पास पहुँचती है, तो रोटर की मुख्य वाइंडिंग को डीसी सप्लाई दी जाती है, जिससे मोटर सिंक्रोनस गति पर लॉक हो जाती है।

इसका मतलब है कि इन तरीकों से मोटर को सही गति पर लाकर, इसे स्टेटर के चुंबकीय क्षेत्र के साथ तालमेल बिठाकर चालू किया जाता है।

पावर फैक्टर में सुधार

सिंक्रोनस मोटर हर प्रकार के पावर फैक्टर पर काम कर सकती है, चाहे वह यूनिटी पावर फैक्टर (UPF) हो, लीडिंग हो, या लैगिंग पावर फैक्टर।

  1. लैगिंग पावर फैक्टर: अगर मोटर का फील्ड एक्साइटेशन इस तरह से हो कि उत्पन्न वोल्टेज (Eb) आपूर्ति वोल्टेज (V) से कम हो, तो मोटर को अंडर एक्साइटेड कहा जाता है। इस स्थिति में मोटर का पावर फैक्टर लैगिंग होता है, यानी यह पीछे चलने वाला करंट खींचती है।
  2. लीडिंग पावर फैक्टर: अगर मोटर का फील्ड एक्साइटेशन इस तरह से हो कि उत्पन्न वोल्टेज (Ep) आपूर्ति वोल्टेज (V) से अधिक हो, तो मोटर को ओवर एक्साइटेड कहा जाता है। इस स्थिति में मोटर लीडिंग करंट खींचती है, जिससे पावर फैक्टर में सुधार होता है।
  3. यूनिटी पावर फैक्टर: अगर फील्ड एक्साइटेशन ऐसा हो कि उत्पन्न वोल्टेज (E) आपूर्ति वोल्टेज (V) के बराबर हो, तो मोटर को नॉर्मल एक्साइटेड कहा जाता है, और इसका पावर फैक्टर यूनिटी (1) होता है।
  4. सिंक्रोनस कंडेंसर: अगर सिंक्रोनस मोटर बिना लोड के चल रही हो और ओवर एक्साइटेड हो, तो यह लीडिंग पावर फैक्टर उत्पन्न करती है, जैसे कि एक कंडेंसर। इस स्थिति में मोटर को सिंक्रोनस कंडेंसर कहा जाता है, और इसे पावर फैक्टर सुधार के लिए ट्रांसमिशन लाइनों के साथ जोड़ा जाता है। यह पावर फैक्टर करेक्शन में मदद करता है।


इस कंटेंट को पढ़कर आपको “working principle synchronous motor in hindi” की जानकारी मिल गई होगी। अगर आपका कोई सवाल है या किसी खास टॉपिक पर कंटेंट चाहिए, तो आप कमेंट के माध्यम से हमें बता सकते हैं।

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